Thursday, November 6, 2025

🌿 अध्याय 5 – कर्म संन्यास योग: कर्म और त्याग का सामंजस्य (The Yoga of Renunciation and Action)

 

📖 अध्याय परिचय

गीता का पाँचवा अध्याय, कर्म संन्यास योग, कर्मयोग और संन्यास योग के बीच के apparent contradiction को दूर करता है। इसमें 29 श्लोक हैं, जो स्पष्ट करते हैं कि वास्तविक संन्यास कर्म का त्याग नहीं, बल्कि कर्मफल का त्याग है।


💡 कर्म संन्यास योग का दार्शनिक आधार

यह अध्याय बताता है कि कर्मयोग और ज्ञानयोग दोनों ही मोक्ष के मार्ग हैं, परन्तु कर्मयोग गृहस्थों के लिए अधिक उपयुक्त है। वास्तविक संन्यासी वह है जो बाह्य कर्म करते हुए भी आंतरिक रूप से कर्मों के फल से मुक्त रहता है।


🌟 प्रमुख श्लोक एवं उनका विस्तृत विवरण

🌺 श्लोक 1-6: कर्म संन्यास बनाम कर्मयोग

श्लोक 1:
"अर्जुन उवाच –
संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि।
यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम्।।"

भावार्थ:
"अर्जुन बोले - हे कृष्ण! आप कर्मों के संन्यास की और फिर योग की प्रशंसा करते हैं। इन दोनों में से哪一个 श्रेष्ठ है, यह निश्चित रूप से मुझे बताइए।"

श्लोक 2:
"श्री भगवानुवाच –
संन्यासः कर्मयोगश्च निःश्रेयसकरावुभौ।
तयोस्तु कर्मसंन्यासात्कर्मयोगो विशिष्यते।।"

भावार्थ:
"श्री भगवान बोले - संन्यास और कर्मयोग दोनों ही कल्याणकारक हैं, किन्तु इन दोनों में कर्मसंन्यास की अपेक्षा कर्मयोग श्रेष्ठ है।"

श्लोक 4:
"सांख्ययोगौ पृथग्बालाः प्रवदन्ति न पण्डिताः।
एकमप्यास्थितः सम्यगुभयोर्विन्दते फलम्।।"

भावार्थ:
"बालक ही सांख्य और योग को अलग-अलग कहते हैं, पण्डित नहीं। एक को भी अच्छी प्रकार से अपनाने वाला दोनों के फल प्राप्त कर लेता है।"


🔥 श्लोक 7-13: वास्तविक संन्यासी के लक्षण

श्लोक 7:
"योगयुक्तो विशुद्धात्मा विजितात्मा जितेन्द्रियः।
सर्वभूतात्मभूतात्मा कुर्वन्नपि न लिप्यते।।"

भावार्थ:
"योगयुक्त, शुद्ध अंत:करण, जीते हुए मन और इंद्रियों वाला, सब प्राणियों में आत्मभाव रखने वाला मनुष्य कर्म करता हुआ भी लिप्त नहीं होता।"

श्लोक 8-9:
"नैव किंचित्करोमीति युक्तो मन्येत तत्त्ववित्।
पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्नश्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन्।।
प्रलपन्विसृजन्गृह्ण्नुन्मिषन्निमिषन्नपि।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेषु वर्तन्त इति धारयन्।।"

भावार्थ:
"तत्त्वज्ञानी योगी 'मैं कुछ नहीं करता हूँ' ऐसा मानता हुआ, देखता, सुनता, छूता, सूँघता, खाता, चलता, सोता, साँस लेता, बोलता, त्यागता, ग्रहण करता, आँखें खोलता और मूंदता हुआ भी केवल इंद्रियाँ इंद्रियों के विषयों में वर्तती हैं, ऐसा समझता है।"

श्लोक 10:
"ब्रह्मण्याधाय कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा करोति यः।
लिप्यते न स पापेन पद्मपत्रमिवाम्भसा।।"

भावार्थ:
"जो मनुष्य सब कर्मों को ब्रह्म में अर्पण करके और आसक्ति को त्यागकर कर्म करता है, वह पाप से उसी प्रकार अलिप्त रहता है, जैसे जल से कमल का पत्ता।"


🌼 श्लोक 14-21: आत्मसाक्षात्कार की अवस्था

श्लोक 15:
"नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभुः।
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तवः।।"

भावार्थ:
"परमात्मा न किसी का पाप ग्रहण करता है, न पुण्य। ज्ञान अज्ञान से आवृत है, इसी कारण प्राणी मोहित होते हैं।"

श्लोक 16:
"ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम्।।"

भावार्थ:
"परन्तु जिन मनुष्यों का अज्ञान आत्मज्ञान द्वारा नष्ट हो गया है, उनके लिए वह ज्ञान परमात्मा को सूर्य के समान प्रकाशित कर देता है।"

श्लोक 18:
"विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः।।"

भावार्थ:
"विद्या और विनय से सम्पन्न ब्राह्मण में, गाय में, हाथी में, कुत्ते में और चांडाल में जो पण्डित समदर्शी हैं।"


💫 श्लोक 22-29: भौतिक सुखों से मुक्ति

श्लोक 22:
"ये हि संस्पर्शजा भोगा दुःखयोनय एव ते।
आद्यन्तवन्तः कौन्तेय न तेषु रमते बुधः।।"

भावार्थ:
"हे कौन्तेय! इन्द्रियों और विषयों के संपर्क से उत्पन्न होने वाले भोग दुःख के कारण हैं, उनके आदि-अंत हैं, इसलिए बुद्धिमान पुरुष उनमें आनन्द नहीं लेता।"

श्लोक 23:
"शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात्।
कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः।।"

भावार्थ:
"जो मनुष्य शरीर के त्याग से पहले ही काम और क्रोध के उत्पन्न वेग को सहन करने में समर्थ हो जाता है, वह योगी और सुखी है।"

श्लोक 24:
"योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्ज्योतिरेव यः।
स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति।।"

भावारथ:
"जो अंत:करण में सुख मानने वाला, अंत:करण में ही रमण करने वाला और अंत:करण में ही ज्योति स्वरूप है, वह योगी ब्रह्मनिर्वाण को प्राप्त होकर ब्रह्मभूत हो जाता है।"

श्लोक 26:
"कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्।
अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम्।।"

भावार्थ:
"काम और क्रोध से रहित, संयमित चित्त वाले, आत्मतत्त्व को जानने वाले यतियों के लिए सर्वत्र ब्रह्मनिर्वाण विद्यमान है।"


🌍 आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता

🧘‍♂️ व्यक्तिगत विकास के लिए:

💼 पेशेवर जीवन के लिए:

  • Work with Detachment: कर्म को ईश्वरार्पण भाव से करना

  • Stress Management: परिणाम की चिंता से मुक्ति

  • Ethical Conduct: नैतिकता और ईमानदारी

🌱 सामाजिक संदर्भ में:

  • Equality: समदर्शी भाव

  • Selfless Service: निस्वार्थ सेवा

  • Social Harmony: सभी प्राणियों में एक आत्मा का दर्शन


🛤️ कर्म संन्यास योग से प्राप्त जीवन-मंत्र

  1. "कर्म करो, फल से मुक्त रहो" – निष्काम कर्म

  2. "सबमें एक आत्मा का दर्शन" – समदर्शिता

  3. "इंद्रियों को वश में करो" – आत्म-संयम

  4. "आंतरिक सुख की खोज" – अंतराराम


📚 व्यावहारिक अनुशीलन

दैनिक जीवन में अपनाएँ:

  • कर्मों को ईश्वर को अर्पित करना

  • काम-क्रोध पर नियंत्रण का अभ्यास

  • सभी में समभाव रखना

आध्यात्मिक अभ्यास:

  • ध्यान और आत्मचिंतन

  • इंद्रिय निग्रह

  • निष्काम कर्म का निरंतर अभ्यास


🌈 निष्कर्ष: कर्म और संन्यास का सुंदर समन्वय

कर्म संन्यास योग हमें सिखाता है कि वास्तविक स्वतंत्रता कर्मों का त्याग नहीं, बल्कि कर्मफल के मोह का त्याग है। यह अध्याय गृहस्थ और संन्यासी दोनों के लिए समान रूप से मार्गदर्शक है।

✨ स्मरण रहे:
"कर्म करो निष्काम भाव से,
फल की इच्छा मिटाओ।
सबमें देखो एक ही आत्मा,
मोक्ष पथ पर बढ़ते जाओ।"


🕉️ श्री कृष्णार्पणमस्तु 🕉️

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