Wednesday, November 5, 2025

🌿 अध्याय 4 – ज्ञान कर्म संन्यास योग:

 🌿 अध्याय 4 – ज्ञान कर्म संन्यास योग: दिव्य ज्ञान और कर्म का रहस्य

(The Yoga of Knowledge and Renunciation of Action)


📖 अध्याय परिचय

गीता का चौथा अध्याय, ज्ञान कर्म संन्यास योग, ज्ञान और कर्म के गहन रहस्यों को उजागर करता है। इसमें 42 श्लोक हैं, जो अवतारवाद, ज्ञानयज्ञ, और कर्मों के रहस्य को समझाते हैं। यह अध्याय मोक्ष प्राप्ति के लिए ज्ञान की श्रेष्ठता को प्रतिपादित करता है।


💡 ज्ञान कर्म संन्यास योग का दार्शनिक आधार

यह अध्याय ज्ञानमार्ग और कर्ममार्ग के समन्वय को दर्शाता है, जहाँ श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि कर्म और ज्ञान दोनों ही मोक्ष के मार्ग हैं, परन्तु ज्ञान कर्म से श्रेष्ठ है।


🌟 प्रमुख श्लोक एवं उनका विस्तृत विवरण

🌺 श्लोक 1-15: अवतार का रहस्य और ज्ञान की परंपरा

श्लोक 1:
"इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम्।
विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाकवेऽब्रवीत्।।"

भावार्थ:
"मैंने इस अविनाशी योग को सूर्य से कहा, सूर्य ने मनु से कहा और मनु ने इक्ष्वाकु से कहा।"

श्लोक 5:
"श्री भगवानुवाच –
बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन।
तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप।।"

भावार्थ:
"श्री भगवान बोले - हे अर्जुन! तुम्हारे और मेरे अनेक जन्म बीत चुके हैं। मैं उन सबको जानता हूँ, किन्तु हे परंतप! तुम नहीं जानते।"

श्लोक 7-8:
"यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।
परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे।।"

भावार्थ:
"हे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब मैं अपने आपको प्रकट करता हूँ। साधुओं के उद्धार, दुष्टों के विनाश और धर्म की स्थापना के लिए मैं युग-युग में प्रकट होता हूँ।"


🔥 श्लोक 16-24: कर्मों का रहस्य और ज्ञानयज्ञ

श्लोक 16:
"किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।
तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।"

भावार्थ:
"कर्म क्या है और अकर्म क्या है, इस विषय में बुद्धिमान लोग भी मोहित हो जाते हैं। मैं तुम्हें उस कर्म को बताऊँगा, जिसे जानकर तुम पाप से मुक्त हो जाओगे।"

श्लोक 17:
"कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः।
अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः।।"

भावार्थ:
"कर्म की गति बहुत गहन है, इसलिए कर्म, विकर्म और अकर्म को भलीभाँति समझना चाहिए।"

श्लोक 18:
"कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः।
स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत्।।"

भावार्थ:
"जो कर्म में अकर्म और अकर्म में कर्म देखता है, वह मनुष्यों में बुद्धिमान है और सम्पूर्ण कर्मों को करने वाला योगी है।"

श्लोक 24:
"ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।
ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना।।"

भावार्थ:
"ब्रह्म ही अर्पण है, ब्रह्म ही हवि है, ब्रह्मरूप अग्नि में ब्रह्मरूप हवनकर्ता द्वारा ब्रह्मरूप हवि डाली जाती है। ब्रह्मकर्मसमाधि को प्राप्त पुरुष को ब्रह्म ही प्राप्त होता है।"


🌼 श्लोक 25-33: विभिन्न यज्ञों का वर्णन

श्लोक 25:
"दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते।
ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति।।"

भावार्थ:
"कुछ योगी देवताओं के लिए यज्ञ करते हैं, कुछ ब्रह्मरूप अग्नि में यज्ञरूपी यज्ञ की आहुति देते हैं।"

श्लोक 28:
"द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे।
स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशितव्रताः।।"

भावार्थ:
"कुछ संशितव्रत यति लोग द्रव्ययज्ञ, तपोयज्ञ, योगयज्ञ और स्वाध्यायज्ञानयज्ञ करते हैं।"

श्लोक 30:
"सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः।
यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम्।।"

भावार्थ:
"ये सभी यज्ञवेत्ता यज्ञों द्वारा पापों का क्षय करके यज्ञशेष अमृत को भोगते हुए शाश्वत ब्रह्म को प्राप्त होते हैं।"


💫 श्लोक 34-42: ज्ञान की श्रेष्ठता और प्राप्ति का मार्ग

श्लोक 34:
"तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः।।"

भावार्थ:
"उस ज्ञान को तू प्रणिपात (समर्पण), परिप्रश्न (श्रद्धापूर्वक प्रश्न) और सेवा द्वारा जान। तत्त्वदर्शी ज्ञानी जन तुझे उस ज्ञान का उपदेश देंगे।"

श्लोक 36:
"अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः।
सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि।।"

भावार्थ:
"यदि तू समस्त पापियों में भी अधिक पापी है, तो भी ज्ञानरूपी नौका द्वारा ही तू सम्पूर्ण पापों से तर जाएगा।"

श्लोक 37:
"यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन।
ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा।।"

भावार्थ:
"हे अर्जुन! जैसे प्रज्वलित अग्नि ईंधन को भस्म कर देती है, वैसे ही ज्ञानाग्नि समस्त कर्मों को भस्म कर देती है।"

श्लोक 38:
"न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते।
तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति।।"

भावार्थ:
"इस लोक में ज्ञान के समान पवित्र करने वाला दूसरा कोई नहीं है। योग से सिद्ध हुआ पुरुष कालक्रम से उस ज्ञान को अपने आप में प्राप्त कर लेता है।"


🌍 आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता

🧘‍♂️ व्यक्तिगत विकास के लिए:

  • ज्ञानार्जन: निरंतर सीखने की प्रक्रिया

  • आत्म-साक्षात्कार: स्वयं को जानने का प्रयास

  • पाप-मुक्ति: ज्ञान द्वारा मानसिक शुद्धि

💼 पेशेवर जीवन के लिए:

  • Continuous Learning: ज्ञान की निरंतरता

  • Ethical Decisions: ज्ञानपूर्वक निर्णय

  • Skill Development: विभिन्न यज्ञों के आधुनिक रूप

🌱 सामाजिक संदर्भ में:

  • Knowledge Sharing: ज्ञान का प्रसार

  • Mentorship: गुरु-शिष्य परंपरा

  • Social Service: यज्ञभाव से समाज सेवा


🛤️ ज्ञान कर्म संन्यास योग से प्राप्त जीवन-मंत्र

  1. "ज्ञान ही मुक्ति है" – अज्ञान के अंधकार को दूर करो

  2. "गुरु की कृपा से ज्ञान" – सद्गुरु की शरण में जाओ

  3. "यज्ञभाव से कर्म" – सभी कर्मों को यज्ञ मानो

  4. "अवतार का उद्देश्य" – धर्म की स्थापना के लिए कार्य करो


📚 व्यावहारिक अनुशीलन

दैनिक जीवन में अपनाएँ:

  • प्रतिदिन ज्ञानार्जन का समय निकालें

  • गुरु/मेंटर की शरण में जाएँ

  • कर्मों को यज्ञभाव से करें

आध्यात्मिक अभ्यास:

  • स्वाध्याय और मनन

  • ज्ञानयज्ञ का अभ्यास

  • आत्मचिंतन और ध्यान


🌈 निष्कर्ष: ज्ञान की ज्योति

ज्ञान कर्म संन्यास योग हमें सिखाता है कि वास्तविक मुक्ति ज्ञान से ही संभव है। यह अध्याय अवतारवादज्ञान की परंपरा, और कर्म के रहस्य को समझाता हुआ हमें परम लक्ष्य की ओर ले जाता है।

✨ स्मरण रहे:
"ज्ञान है वह दीपक जो जलाए,
अज्ञान के अंधकार को मिटाए।
गुरु कृपा से मिले यह ज्ञान,
ले परमात्म-पद तक पहुँचाए।"


🕉️ श्री कृष्णार्पणमस्तु 🕉️

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