🌿 अध्याय 15 – पुरुषोत्तम योग: परमपुरुष का ज्ञान
(The Yoga of the Supreme Person)
📖 अध्याय परिचय
गीता का पंद्रहवाँ अध्याय, पुरुषोत्तम योग, तीन पुरुषों - क्षर, अक्षर और उत्तम पुरुष के स्वरूप को प्रकट करता है। इसमें 20 श्लोक हैं, जो संसार के वास्तविक स्वरूप और मोक्ष के मार्ग का सार प्रस्तुत करते हैं।
💡 पुरुषोत्तम योग का दार्शनिक आधार
यह अध्याय बताता है कि सम्पूर्ण सृष्टि एक अश्वत्थ वृक्ष के समान है, जिसका मूल ऊपर (परमात्मा में) और शाखाएँ नीचे हैं। परमात्मा ही इस संसार का आधार और लक्ष्य है।
🌟 प्रमुख श्लोक एवं उनका विस्तृत विवरण
🌺 श्लोक 1-4: संसार रूपी अश्वत्थ वृक्ष
श्लोक 1:
"श्री भगवानुवाच –
ऊर्ध्वमूलमधःशाखमश्वत्थं प्राहुरव्ययम्।
छन्दांसि यस्य पर्णानि यस्तं वेद स वेदवित्।।"
भावार्थ:
"श्री भगवान बोले - जिसके मूल ऊपर और शाखाएँ नीचे हैं, जिसके पर्ण वेद हैं, ऐसे अव्यय अश्वत्थ वृक्ष को जो जानता है, वह वेदवित् है।"
श्लोक 2:
"अधश्चोर्ध्वं प्रसृतास्तस्य शाखाः
गुणप्रवृद्धा विषयप्रवालाः।
अधश्च मूलान्यनुसन्ततानि
कर्मानुबन्धीनि मनुष्यलोके।।"
भावार्थ:
"उसकी शाखाएँ नीचे और ऊपर फैली हुई हैं, जो गुणों से प्रवृद्ध और विषयरूपी प्रवाल हैं, नीचे की ओर मनुष्यलोक में कर्मानुबंधी मूल फैले हुए हैं।"
श्लोक 3-4:
"न रूपमस्येह तथोपलभ्यते
नान्तो न चादिर्न च सम्प्रतिष्ठा।
अश्वत्थमेनं सुविरूढमूल-
मसङ्गशस्त्रेण दृढेन छित्त्वा।।
ततः पदं तत्परिमार्गितव्यं
यस्मिन्गता न निवर्तन्ति भूयः।
तमेव चाद्यं पुरुषं प्रपद्ये
यतः प्रवृत्तिः प्रसृता पुराणी।।"
भावार्थ:
"इस लोक में इसका रूप वैसा प्रतीत नहीं होता, न इसका अंत है, न आदि है, न संप्रतिष्ठा है। इस सुविरूढ़मूल अश्वत्थ वृक्ष को असङ्गशस्त्र से दृढ़तापूर्वक काटकर, तब उस पद को खोजना चाहिए, जिसे प्राप्त होकर पुनः लौटकर नहीं आते। उसी आदि पुरुष की मैं शरण ग्रहण करता हूँ, जिससे यह प्राचीन प्रवृत्ति प्रसृत हुई है।"
🔥 श्लोक 5-6: मुमुक्षु के लक्षण
श्लोक 5:
"निर्मानमोहा जितसङ्गदोषा
अध्यात्मनित्या विनिवृत्तकामाः।
द्वन्द्वैर्विमुक्ताः सुखदुःखसंज्ञै-
र्गच्छन्त्यमूढाः पदमव्ययं तत्।।"
भावार्थ:
"जो निर्मानमोह, जितसंगदोष, अध्यात्मनित्य, विनिवृत्तकाम और सुख-दुःखरूपी द्वन्द्वों से मुक्त हैं, वे अमूढ़ उस अव्यय पद को प्राप्त होते हैं।"
श्लोक 6:
"न तद्भासयते सूर्यो न शशाङ्को न पावकः।
यद्गत्वा न निवर्तन्ते तद्धाम परमं मम।।"
भावार्थ:
"वह मेरा परम धाम न सूर्य प्रकाशित करता है, न चंद्रमा, न अग्नि, जिसे प्राप्त होकर लौटकर नहीं आते।"
🌼 श्लोक 7-11: जीवात्मा और परमात्मा
श्लोक 7:
"ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः।
मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति।।"
भावार्थ:
"संसार में सनातन जीवभूत मेरा अंश ही मन और पाँच इंद्रियों सहित प्रकृति में स्थित होकर कर्षण करता है।"
श्लोक 8:
"शरीरं यदवाप्नोति यच्चाप्युत्क्रामतीश्वरः।
गृहीत्वैतानि संयाति वायुर्गन्धानिवाशयात्।।"
भावार्थ:
"जब ईश्वर शरीर को प्राप्त होता है और जब उससे उत्क्रमण करता है, तो इन इंद्रियों को ग्रहण करके चला जाता है, जैसे वायु गंधों को आशय से ग्रहण करके ले जाती है।"
श्लोक 9:
"श्रोत्रं चक्षुः स्पर्शनं च रसनं घ्राणमेव च।
अधिष्ठाय मनश्चायं विषयानुपसेवते।।"
भावार्थ:
"यह जीव श्रोत्र, चक्षु, स्पर्शन, रसना और घ्राण को तथा मन को अधिष्ठान करके विषयों का उपभोग करता है।"
श्लोक 10:
"उत्क्रामन्तं स्थितं वापि भुञ्जानं वा गुणान्वितम्।
विमूढा नानुपश्यन्ति पश्यन्ति ज्ञानचक्षुषः।।"
भावार्थ:
"उत्क्रमण करते हुए, स्थित और भोग करते हुए गुणों से युक्त को मूढ़ नहीं देखते, ज्ञानचक्षु वाले देखते हैं।"
श्लोक 11:
"यतन्तो योगिनश्चैनं पश्यन्त्यात्मन्यवस्थितम्।
यतन्तोऽप्यकृतात्मानो नैनं पश्यन्त्यचेतसः।।"
भावार्थ:
"यत्न करने वाले योगी इस आत्मा को आत्मा में स्थित देखते हैं, किन्तु अकृतात्मा और अचेतस यत्न करते हुए भी नहीं देखते।"
💫 श्लोक 12-15: परमात्मा का तेज
श्लोक 12:
"यदादित्यगतं तेजो जगद्भासयतेऽखिलम्।
यच्चन्द्रमसि यच्चाग्नौ तत्तेजो विद्धि मामकम्।।"
भावार्थ:
"जो तेज आदित्य में है, जो समस्त जगत को प्रकाशित करता है, जो चंद्रमा में और जो अग्नि में है, वह तेज मेरा ही जानो।"
श्लोक 13:
"गामाविश्य च भूतानि धारयाम्यहमोजसा।
पुष्णामि चौषधीः सर्वाः सोमो भूत्वा रसात्मकः।।"
भावार्थ:
"मैं पृथ्वी में प्रवेश करके ओज से प्राणियों को धारण करता हूँ और सोम बनकर रसात्मक सब ओषधियों को पोषण करता हूँ।"
श्लोक 14:
"अहं वैश्वानरो भूत्वा प्राणिनां देहमाश्रितः।
प्राणापानसमायुक्तः पचाम्यन्नं चतुर्विधम्।।"
भावार्थ:
"मैं वैश्वानर बनकर प्राणियों के देह में स्थित होकर प्राण और अपान से युक्त होकर चार प्रकार के अन्न को पचाता हूँ।"
श्लोक 15:
"सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो
मत्तः स्मृतिर्ज्ञानमपोहनं च।
वेदैश्च सर्वैरहमेव वेद्यो
वेदान्तकृद्वेदविदेव चाहम्।।"
भावार्थ:
"मैं सबके हृदय में सन्निविष्ट हूँ, मुझसे स्मृति, ज्ञान और अपोहन होता है, सब वेदों से मैं ही वेद्य हूँ, वेदान्तकर्ता और वेदवित् भी मैं ही हूँ।"
🌺 श्लोक 16-20: तीन पुरुष और परमात्मा
श्लोक 16:
"द्वाविमौ पुरुषौ लोके क्षरश्चाक्षर एव च।
क्षरः सर्वाणि भूतानि कूटस्थोऽक्षर उच्यते।।"
भावार्थ:
"इस लोक में दो पुरुष हैं - क्षर और अक्षर। सब भूत क्षर हैं और कूटस्थ अक्षर कहा जाता है।"
श्लोक 17:
"उत्तमः पुरुषस्त्वन्यः परमात्मेत्युदाहृतः।
यो लोकत्रयमाविश्य बिभर्त्यव्यय ईश्वरः।।"
भावार्थ:
"परन्तु उत्तम पुरुष अन्य है, जो परमात्मा कहा जाता है, जो तीनों लोकों में प्रवेश करके अव्यय ईश्वर धारण करता है।"
श्लोक 18:
"यस्मात्क्षरमतीतोऽहमक्षरादपि चोत्तमः।
अतोऽस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः।।"
भावार्थ:
"जिस कारण मैं क्षर से अतीत और अक्षर से भी उत्तम हूँ, इसलिए लोक और वेद में पुरुषोत्तम प्रथित हूँ।"
श्लोक 19:
"यो मामेवमसम्मूढो जानाति पुरुषोत्तमम्।
स सर्वविद्भजति मां सर्वभावेन भारत।।"
भावार्थ:
"हे भारत! जो मुझ पुरुषोत्तम को इस प्रकार असम्मूढ़ होकर जानता है, वह सर्ववित् सर्वभाव से मेरा भजन करता है।"
श्लोक 20:
"इति गुह्यतमं शास्त्रमिदमुक्तं मयानघ।
एतद्बुद्ध्वा बुद्धिमान्स्यात्कृतकृत्यश्च भारत।।"
भावार्थ:
"हे अनघ! यह गुह्यतम शास्त्र मैंने कहा, हे भारत! इसे बुद्धिमान जानकर बुद्धिमान और कृतकृत्य हो जाता है।"
🌍 आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता
🧘♂️ व्यक्तिगत विकास के लिए:
Self-Realization: आत्म-साक्षात्कार
Spiritual Growth: आध्यात्मिक विकास
Life Purpose: जीवन का उद्देश्य
💼 पेशेवर जीवन के लिए:
Holistic Vision: समग्र दृष्टिकोण
Ethical Leadership: नैतिक नेतृत्व
Purpose Driven Work: उद्देश्यपूर्ण कार्य
🌱 सामाजिक संदर्भ में:
Universal Brotherhood: सार्वभौमिक बंधुत्व
Environmental Consciousness: पर्यावरण चेतना
Spiritual Awareness: आध्यात्मिक जागरूकता
🛤️ पुरुषोत्तम योग से प्राप्त जीवन-मंत्र
"परमात्मा सबमें विद्यमान" – सर्वव्यापी भाव
"संसार से मोह त्यागो" – वास्तविकता का ज्ञान
"पुरुषोत्तम की शरण लो" – परम लक्ष्य
"जीवन का सार जानो" – वास्तविक उद्देश्य
📚 व्यावहारिक अनुशीलन
दैनिक जीवन में अपनाएँ:
प्रकृति में ईश्वर के दर्शन
आत्मचिंतन और स्वाध्याय
निष्काम कर्म का अभ्यास
आध्यात्मिक अभ्यास:
ध्यान और भक्ति
गुरु की शरण
वेदान्त का अध्ययन
🌈 निष्कर्ष: परम लक्ष्य की प्राप्ति
पुरुषोत्तम योग हमें सिखाता है कि वास्तविक मुक्ति परमात्मा को जानने और उनकी शरण में जाने में है। यह अध्याय गीता के सम्पूर्ण दर्शन का सार प्रस्तुत करता है।
✨ स्मरण रहे:
"संसार है अश्वत्थ वृक्ष, मूल है ऊपर ईश्वर।
जो जाने इस रहस्य को, वही होता है विश्वविजयी नर।
पुरुषोत्तम है परम लक्ष्य, उनकी शरण में जाओ।
सब बंधन कट जाएँगे, मोक्ष पथ पर बढ़ते जाओ।"
🕉️ श्री कृष्णार्पणमस्तु 🕉️
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