Friday, November 7, 2025

🌿 अध्याय 9 – राजविद्या राजगुह्य योग: परम रहस्य का ज्ञान (The Yoga of Royal Knowledge and Royal Secret)

 🌿 अध्याय 9 – राजविद्या राजगुह्य योग: परम रहस्य का ज्ञान

(The Yoga of Royal Knowledge and Royal Secret)


📖 अध्याय परिचय

गीता का नौवाँ अध्याय, राजविद्या राजगुह्य योग, सबसे उत्तम ज्ञान और सबसे गोपनीय रहस्य को प्रकट करता है। इसमें 34 श्लोक हैं, जो भगवान की दिव्य लीला, भक्ति के स्वरूप और सरल उपासना के महत्व को दर्शाते हैं।


💡 राजविद्या राजगुह्य योग का दार्शनिक आधार

यह अध्याय बताता है कि सम्पूर्ण सृष्टि भगवान की माया से उत्पन्न हुई है, परन्तु वह इससे अप्रभावित रहता है। यह ज्ञान सभी विद्याओं में श्रेष्ठ और सभी रहस्यों में गोपनीय है।


🌟 प्रमुख श्लोक एवं उनका विस्तृत विवरण

🌺 श्लोक 1-6: राजविद्या और राजगुह्य का प्रकटीकरण

श्लोक 1:
"श्री भगवानुवाच –
इदं तु ते गुह्यतमं प्रवक्ष्याम्यनसूयवे।
ज्ञानं विज्ञानसहितं यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात्।।"

भावार्थ:
"श्री भगवान बोले - हे अनसूयु! अब मैं तुझे इस ज्ञान और विज्ञान सहित गुह्यतम तत्त्व कहता हूँ, जिसे जानकर तू पाप से मुक्त हो जाएगा।"

श्लोक 2:
"राजविद्या राजगुह्यं पवित्रमिदमुत्तमम्।
प्रत्यक्षावगमं धर्म्यं सुसुखं कर्तुमव्ययम्।।"

भावार्थ:
"यह राजविद्या, राजगुह्य, परम पवित्र, प्रत्यक्ष अनुभव में आने वाला, धर्मयुक्त, अत्यंत सुखपूर्वक करने योग्य और अविनाशी है।"

श्लोक 4:
"मया ततमिदं सर्वं जगदव्यक्तमूर्तिना।
मत्स्थानि सर्वभूतानि न चाहं तेष्ववस्थितः।।"

भावार्थ:
"मेरी अव्यक्त मूर्ति से यह समस्त जगत व्याप्त है। सब प्राणी मुझमें स्थित हैं, परन्तु मैं उनमें स्थित नहीं हूँ।"

श्लोक 5:
"न च मत्स्थानि भूतानि पश्य मे योगमैश्वरम्।
भूतभृन्न च भूतस्थो ममात्मा भूतभावनः।।"

भावार्थ:
"और प्राणी मुझमें स्थित नहीं हैं, मेरे ऐश्वर्ययोग को देख। मैं प्राणियों का धारण-पोषण करने वाला हूँ, परन्तु प्राणियों में स्थित नहीं हूँ।"


🔥 श्लोक 7-15: भगवान की सृष्टि लीला

श्लोक 7:
"सर्वभूतानि कौन्तेय प्रकृतिं यान्ति मामिकाम्।
कल्पक्षये पुनस्तानि कल्पादौ विसृजाम्यहम्।।"

भावार्थ:
"हे कौन्तेय! कल्प के अंत में सब प्राणी मेरी प्रकृति में प्रवेश करते हैं और कल्प के आदि में मैं उन्हें पुनः उत्पन्न करता हूँ।"

श्लोक 8:
"प्रकृतिं स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः।
भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशं प्रकृतेर्वशात्।।"

भावार्थ:
"अपनी प्रकृति को आश्रय करके मैं इस समस्त प्राणिसमूह को बार-बार प्रकट करता हूँ, जो प्रकृति के वश में होने के कारण अवश है।"

श्लोक 9:
"न च मां तानि कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय।
उदासीनवदासीनमसक्तं तेषु कर्मसु।।"

भावार्थ:
"हे धनञ्जय! ये कर्म मुझे बाँधते नहीं, क्योंकि मैं उदासीन की भाँति उन कर्मों में आसक्ति रहित बैठा रहता हूँ।"

श्लोक 10:
"मयाध्यक्षेण प्रकृतिः सूयते सचराचरम्।
हेतुनानेन कौन्तेय जगद्विपरिवर्तते।।"

भावार्थ:
"हे कौन्तेय! मेरी अध्यक्षता में प्रकृति चराचर जगत की उत्पत्ति करती है। इसी कारण से यह जगत चक्र परिवर्तनशील है।"


🌼 श्लोक 16-25: भगवान की विभिन्न लीलाएँ

श्लोक 16:
"अहं क्रतुरहं यज्ञः स्वधाहमहमौषधम्।
मन्त्रोऽहमहमेवाज्यमहमग्निरहं हुतम्।।"

भावार्थ:
"मैं क्रतु हूँ, मैं यज्ञ हूँ, मैं स्वधा हूँ, मैं ओषधि हूँ, मैं मंत्र हूँ, मैं आज्य हूँ, मैं अग्नि हूँ और मैं हवन हूँ।"

श्लोक 17:
"पिताहमस्य जगतो माता धाता पितामहः।
वेद्यं पवित्रमोंकार ऋक्साम यजुरेव च।।"

भावार्थ:
"मैं इस जगत का पिता, माता, धाता और पितामह हूँ। मैं वेद्य, पवित्र, ॐकार, ऋक्, साम और यजुर्वेद हूँ।"

श्लोक 18:
"गतिर्भर्ता प्रभुः साक्षी निवासः शरणं सुहृत्।
प्रभवः प्रलयः स्थानं निधानं बीजमव्ययम्।।"

भावार्थ:
"मैं गति, भर्ता, प्रभु, साक्षी, निवास, शरण, सुहृत, उत्पत्ति, प्रलय, स्थान, निधान और अव्यय बीज हूँ।"

श्लोक 22:
"अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्।।"

भावार्थ:
"जो मनुष्य अनन्य भाव से मेरा चिंतन करते हुए मेरी उपासना करते हैं, उन नित्य युक्त भक्तों का योगक्षेम (प्राप्त वस्तु की रक्षा और अप्राप्त की प्राप्ति) मैं वहन करता हूँ।"


💫 श्लोक 26-34: सरल भक्ति का महत्व

श्लोक 26:
"पत्रं पुष्पं फलं तोयं यो मे भक्त्या प्रयच्छति।
तदहं भक्त्युपहृतमश्नामि प्रयतात्मनः।।"

भावार्थ:
"जो भक्ति से पत्र, पुष्प, फल और जल मुझे अर्पण करता है, उस प्रयत्नशील आत्मा द्वारा भक्तिपूर्वक अर्पण किया हुआ मैं ग्रहण करता हूँ।"

श्लोक 27:
"यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्।
यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्।।"

भावार्थ:
"हे कौन्तेय! तू जो कुछ करता है, जो कुछ खाता है, जो कुछ हवन करता है, जो कुछ दान देता है और जो कुछ तपस्या करता है, सब मुझे अर्पण कर।"

श्लोक 29:
"समोऽहं सर्वभूतेषु न मे द्वेष्योऽस्ति न प्रियः।
ये भजन्ति तु मां भक्त्या मयि ते तेषु चाप्यहम्।।"

भावार्थ:
"मैं सब प्राणियों में समान हूँ, न मेरा कोई द्वेषी है, न प्रिय। परन्तु जो भक्ति से मेरा भजन करते हैं, वे मुझमें हैं और मैं उनमें हूँ।"

श्लोक 30:
"अपि चेत्सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्।
साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः।।"

भावार्थ:
"यदि सुदुराचारी भी अनन्य भाव से मेरा भजन करता है, तो उसे साधु ही मानना चाहिए, क्योंकि उसने ठीक प्रकार से संकल्प कर लिया है।"

श्लोक 31:
"क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति।
कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति।।"

भावार्थ:
"वह शीघ्र ही धर्मात्मा हो जाता है और सदा शांति को प्राप्त होता है। हे कौन्तेय! तू प्रतिज्ञा कर कि मेरा भक्त कभी नष्ट नहीं होता।"

श्लोक 32:
"मां हि पार्थ व्यपाश्रित्य येऽपि स्युः पापयोनयः।
स्त्रियो वैश्यास्तथा शूद्रास्तेऽपि यान्ति परां गतिम्।।"

भावार्थ:
"हे पार्थ! जो स्त्री, वैश्य और शूद्र भी पापयोनि में उत्पन्न हुए हैं, वे भी मेरा आश्रय लेकर परम गति को प्राप्त होते हैं।"

श्लोक 34:
"मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः।।"

भावार्थ:
"मुझमें मन वाला, मेरा भक्त, मेरा पूजक हो और मुझे नमस्कार कर। इस प्रकार मुझमें आत्मा को लगाकर और मुझे परायण होकर तू मुझे ही प्राप्त होगा।"


🌍 आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता

🧘‍♂️ व्यक्तिगत विकास के लिए:

  • Simple Devotion: सरल भक्ति का महत्व

  • Equal Vision: समदर्शी दृष्टिकोण

  • Self-Surrender: आत्मसमर्पण की भावना

💼 पेशेवर जीवन के लिए:

  • Dedicated Work: कर्म को ईश्वरार्पण

  • Equal Opportunity: समान अवसर का दृष्टिकोण

  • Ethical Conduct: नैतिक आचरण

🌱 सामाजिक संदर्भ में:

  • Social Equality: सामाजिक समानता

  • Inclusive Approach: समावेशी दृष्टिकोण

  • Compassionate Living: करुणामय जीवन


🛤️ राजविद्या राजगुह्य योग से प्राप्त जीवन-मंत्र

  1. "सब कुछ ईश्वर को अर्पण करो" – समर्पण की भावना

  2. "सरल भक्ति सर्वोत्तम" – निष्कपट उपासना

  3. "सबमें समान दृष्टि" – समदर्शिता

  4. "ईश्वर सबका कल्याण करते हैं" – दिव्य कृपा


📚 व्यावहारिक अनुशीलन

दैनिक जीवन में अपनाएँ:

  • प्रतिदिन का कर्म ईश्वर को अर्पित करना

  • सरल भाव से पूजा-अर्चना

  • सभी के प्रति समभाव रखना

आध्यात्मिक अभ्यास:

  • अनन्य भक्ति का विकास

  • ईश्वर के सर्वव्यापी स्वरूप का चिंतन

  • आत्मसमर्पण की भावना


🌈 निष्कर्ष: सर्वोत्तम ज्ञान और रहस्य

राजविद्या राजगुह्य योग हमें सिखाता है कि वास्तविक मुक्ति का मार्ग सरल भक्ति और पूर्ण समर्पण में है। यह अध्याय भगवान की दिव्य लीला और उनकी कृपा का सर्वोत्तम वर्णन प्रस्तुत करता है।

✨ स्मरण रहे:
"राजविद्या यह राजगुह्य, जान लो तुम इसे प्रिय।
सरल भक्ति से ईश्वर मिलें, यही है जीवन की विजय।
पत्र-पुष्प से भी प्रसन्न होते, जो भक्ति से अर्पण करें।
समर्पण भाव से जीवन जियो, सभी बंधन तुम तोड़ें।"


🕉️ श्री कृष्णार्पणमस्तु 🕉️

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