Friday, November 7, 2025

🌿 अध्याय 7 – ज्ञान विज्ञान योग: परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान (The Yoga of Knowledge and Wisdom)

 🌿 अध्याय 7 – ज्ञान विज्ञान योग: परमात्मा के स्वरूप का ज्ञान

(The Yoga of Knowledge and Wisdom)


📖 अध्याय परिचय

गीता का सातवाँ अध्याय, ज्ञान विज्ञान योग, भगवान के दिव्य स्वरूप और उनकी शक्तियों के गहन ज्ञान को प्रकट करता है। इसमें 30 श्लोक हैं, जो परमात्मा के दो स्वरूपों - अपरा प्रकृति और परा प्रकृति का रहस्योद्घाटन करते हैं।


💡 ज्ञान विज्ञान योग का दार्शनिक आधार

यह अध्याय बताता है कि सम्पूर्ण सृष्टि परमात्मा की ही अभिव्यक्ति है। भगवान ने अपनी दो प्रकृतियों - अपरा प्रकृति (भौतिक जगत) और परा प्रकृति (चेतना) से इस ब्रह्मांड की रचना की है।


🌟 प्रमुख श्लोक एवं उनका विस्तृत विवरण

🌺 श्लोक 1-7: परमात्मा का सम्पूर्ण ज्ञान

श्लोक 1:
"श्री भगवानुवाच –
मय्यासक्तमनाः पार्थ योगं युञ्जन्मदाश्रयः।
असंशयं समग्रं मां यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु।।"

भावार्थ:
"श्री भगवान बोले - हे पार्थ! मुझमें आसक्त मन वाला, मेरा आश्रय लेकर योग का अभ्यास करने वाला तू जिस प्रकार निस्संदेह समग्र रूप से मुझे जान सकता है, उसे सुन।"

श्लोक 4-5:
"भूमिरापोऽनलो वायुः खं मनो बुद्धिरेव च।
अहंकार इतीयं मे भिन्ना प्रकृतिरष्टधा।।
अपरेयमितस्त्वन्यां प्रकृतिं विद्धि मे पराम्।
जीवभूतां महाबाहो ययेदं धार्यते जगत्।।"

भावार्थ:
"पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार - यह मेरी आठ प्रकार से विभक्त अपरा प्रकृति है। हे महाबाहो! इससे भिन्न मेरी दूसरी परा प्रकृति को जान, जो जीवरूप है और इस जगत को धारण करती है।"

श्लोक 6:
"एतद्योनीनि भूतानि सर्वाणीत्युपधारय।
अहं कृत्स्नस्य जगतः प्रभवः प्रलयस्तथा।।"

भावार्थ:
"समस्त प्राणियों की उत्पत्ति इन दोनों प्रकृतियों से होती है, ऐसा समझ। मैं सम्पूर्ण जगत की उत्पत्ति और प्रलय का कारण हूँ।"

श्लोक 7:
"मत्तः परतरं नान्यत्किंचिदस्ति धनञ्जय।
मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव।।"

भावार्थ:
"हे धनञ्जय! मुझसे परे कुछ भी नहीं है। यह समस्त जगत मुझमें इस प्रकार गुँथा है, जैसे मणियाँ सूत्र में गुँथी रहती हैं।"


🔥 श्लोक 8-14: भगवान की दिव्य शक्तियाँ

श्लोक 8:
"रसोऽहमप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशिसूर्ययोः।
प्रणवः सर्ववेदेषु शब्दः खे पौरुषं नृषु।।"

भावार्थ:
"हे कौन्तेय! मैं जल में रस हूँ, सूर्य और चंद्रमा में प्रकाश हूँ, सब वेदों में ॐकार हूँ, आकाश में शब्द और मनुष्यों में पौरुष हूँ।"

श्लोक 9:
"पुण्यो गन्धः पृथिव्यां च तेजश्चास्मि विभावसौ।
जीवनं सर्वभूतेषु तपश्चास्मि तपस्विषु।।"

भावार्थ:
"मैं पृथ्वी में पवित्र गंध हूँ, अग्नि में तेज हूँ, सब प्राणियों में जीवन हूँ और तपस्वियों में तप हूँ।"

श्लोक 10:
"बीजं मां सर्वभूतानां विद्धि पार्थ सनातनम्।
बुद्धिर्बुद्धिमतामस्मि तेजस्तेजस्विनामहम्।।"

भावार्थ:
"हे पार्थ! मुझे समस्त प्राणियों का सनातन बीज जान। मैं बुद्धिमानों की बुद्धि और तेजस्वियों का तेज हूँ।"

श्लोक 12:
"ये चैव सात्त्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये।
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि।।"

भावार्थ:
"सात्त्विक, राजसिक और तामसिक भाव मुझसे ही हैं, ऐसा जान। परन्तु मैं उनमें नहीं हूँ, वे मुझमें हैं।"


🌼 श्लोक 15-23: चार प्रकार के भक्त

श्लोक 16:
"चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन।
आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ।।"

भावार्थ:
"हे अर्जुन! हे भरतश्रेष्ठ! चार प्रकार के पुण्यात्मा लोग मेरा भजन करते हैं - आर्त, जिज्ञासु, अर्थार्थी और ज्ञानी।"

श्लोक 17:
"तेषां ज्ञानी नित्ययुक्त एकभक्तिर्विशिष्यते।
प्रियो हि ज्ञानिनोऽत्यर्थमहं स च मम प्रियः।।"

भावार्थ:
"उनमें ज्ञानी नित्ययुक्त और एकभक्ति वाला श्रेष्ठ है। मैं ज्ञानी को अत्यंत प्रिय हूँ और वह मुझे प्रिय है।"

श्लोक 18:
"उदाराः सर्व एवैते ज्ञानी त्वात्मैव मे मतम्।
आस्थितः स हि युक्तात्मा मामेवानुत्तमां गतिम्।।"

भावार्थ:
"ये सभी उदार हैं, परन्तु ज्ञानी तो मेरा आत्मा ही है, ऐसा मेरा मत है। वह युक्तात्मा होकर मेरी ही अनुत्तम गति को प्राप्त होता है।"

श्लोक 19:
"बहूनां जन्मनामन्ते ज्ञानवान्मां प्रपद्यते।
वासुदेवः सर्वमिति स महात्मा सुदुर्लभः।।"

भावार्थ:
"अनेक जन्मों के अंत में ज्ञानवान 'वासुदेव ही सब कुछ है' ऐसा जानकर मुझे प्राप्त होता है। वह महात्मा अत्यंत दुर्लभ है।"


💫 श्लोक 24-30: अविद्या और दिव्य ज्ञान

श्लोक 24:
"अव्यक्तं व्यक्तिमापन्नं मन्यन्ते मामबुद्धयः।
परं भावमजानन्तो ममाव्ययमनुत्तमम्।।"

भावार्थ:
"मूढ़ लोग मेरे अव्यक्त, अनुत्तम और अव्यय परम भाव को न जानकर मुझे व्यक्त रूप में आया हुआ मानते हैं।"

श्लोक 25:
"नाहं प्रकाशः सर्वस्य योगमायासमावृतः।
मूढोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम्।।"

भावार्थ:
"मैं योगमाया से आवृत होने के कारण सबके लिए प्रकट नहीं हूँ। यह मूढ़ लोक मुझ अजन्मा और अव्यय को नहीं जानता।"

श्लोक 26:
"वेदाहं समतीतानि वर्तमानानि चार्जुन।
भविष्याणि च भूतानि मां तु वेद न कश्चन।।"

भावार्थ:
"हे अर्जुन! मैं भूत, वर्तमान और भविष्य के सब प्राणियों को जानता हूँ, परन्तु मुझे कोई नहीं जानता।"

श्लोक 28:
"येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रताः।।"

भावार्थ:
"जिन पुण्यकर्मा मनुष्यों के पाप नष्ट हो गए हैं, वे द्वन्द्व और मोह से मुक्त होकर दृढ़व्रत हो मेरा भजन करते हैं।"

श्लोक 29:
"जरामरणमोक्षाय मामाश्रित्य यतन्ति ये।
ते ब्रह्म तद्विदुः कृत्स्नमध्यात्मं कर्म चाखिलम्।।"

भावार्थ:
"जो जरा-मरण से मुक्ति के लिए मेरा आश्रय लेते हुए प्रयत्न करते हैं, वे सम्पूर्ण ब्रह्म, अध्यात्म और समस्त कर्म को जानते हैं।"

श्लोक 30:
"साधिभूताधिदैवं मां साधियज्ञं च ये विदुः।
प्रयाणकालेऽपि च मां ते विदुर्युक्तचेतसः।।"

भावार्थ:
"जो अधिभूत, अधिदैव और अधियज्ञ रूप से मुझे जानते हैं, वे युक्तचेतस होकर प्रयाणकाल में भी मुझे जानते हैं।"


🌍 आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता

🧘‍♂️ व्यक्तिगत विकास के लिए:

  • Holistic Understanding: ब्रह्मांड और आत्मा का समग्र ज्ञान

  • Spiritual Growth: भक्ति के विभिन्न मार्ग

  • Self-Realization: आत्म-साक्षात्कार की प्रक्रिया

💼 पेशेवर जीवन के लिए:

  • Wisdom Application: ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग

  • Ethical Leadership: नैतिक नेतृत्व

  • Decision Making: दिव्य दृष्टि से निर्णय

🌱 सामाजिक संदर्भ में:

  • Universal Brotherhood: सार्वभौमिक बंधुत्व

  • Compassionate Living: करुणामय जीवन

  • Spiritual Awareness: आध्यात्मिक जागरूकता


🛤️ ज्ञान विज्ञान योग से प्राप्त जीवन-मंत्र

  1. "सब कुछ ईश्वर में है" – समग्र दृष्टिकोण

  2. "ज्ञानी भक्त श्रेष्ठ है" – ज्ञानपूर्ण भक्ति

  3. "योगमाया से मुक्त हो" – वास्तविकता का ज्ञान

  4. "सर्वव्यापी ईश्वर का दर्शन" – सबमें परमात्मा


📚 व्यावहारिक अनुशीलन

दैनिक जीवन में अपनाएँ:

  • प्रकृति में ईश्वर के दर्शन

  • ज्ञानपूर्ण भक्ति का अभ्यास

  • सबमें एक ही आत्मा का विचार

आध्यात्मिक अभ्यास:

  • ईश्वर के सर्वव्यापी स्वरूप का चिंतन

  • योगमाया से मुक्ति का प्रयास

  • ज्ञान और भक्ति का समन्वय


🌈 निष्कर्ष: दिव्य ज्ञान की पराकाष्ठा

ज्ञान विज्ञान योग हमें सिखाता है कि वास्तविक ज्ञान वह है जो हमें परमात्मा के सच्चे स्वरूप का बोध कराए। यह अध्याय भक्ति के विभिन्न स्तरों को प्रकट करते हुए ज्ञानी भक्त की श्रेष्ठता स्थापित करता है।

✨ स्मरण रहे:
"ज्ञान है वह दीपक जो जलाए,
अज्ञान के सारे अंधकार मिटाए।
जो जाने वासुदेव सब कुछ है,
वही महात्मा दुर्लभ कहाए।"


🕉️ श्री कृष्णार्पणमस्तु 🕉️

No comments:

Post a Comment

🌿 अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 16 📖

  🌿   अर्जुन विषाद योग: अध्याय 1, श्लोक 16   📖 🎯 मूल श्लोक: "अनन्तविजयं राजा कुन्तीपुत्रो युधिष्ठिरः। नकुलः सहदेवश्च सुघोषमणिपुष्पकौ...