Friday, November 7, 2025

🌿 अध्याय 17 – श्रद्धात्रय विभाग योग: तीन प्रकार की श्रद्धा (The Yoga of the Threefold Division of Faith)

 🌿 अध्याय 17 – श्रद्धात्रय विभाग योग: तीन प्रकार की श्रद्धा

(The Yoga of the Threefold Division of Faith)


📖 अध्याय परिचय

गीता का सत्रहवाँ अध्याय, श्रद्धात्रय विभाग योग, मनुष्य की श्रद्धा, आहार, यज्ञ, तप और दान के तीन प्रकारों का विस्तृत वर्णन करता है। इसमें 28 श्लोक हैं, जो मनुष्य के स्वभाव के अनुसार उसके कर्मों के भेद को प्रकट करते हैं।


💡 श्रद्धात्रय विभाग योग का दार्शनिक आधार

यह अध्याय बताता है कि प्रत्येक मनुष्य की श्रद्धा उसके स्वभाव (सत्त्व, रजस, तमस) के अनुसार होती है। मनुष्य जैसी श्रद्धा वाला होता है, वैसा ही उसका आचार, विचार और व्यवहार होता है।


🌟 प्रमुख श्लोक एवं उनका विस्तृत विवरण

🌺 श्लोक 1-6: श्रद्धा के तीन प्रकार

श्लोक 1:
"अर्जुन उवाच –
ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विताः।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तमः।।"

भावार्थ:
"अर्जुन बोले - हे कृष्ण! जो शास्त्रविधि को त्यागकर श्रद्धा से युक्त यजन करते हैं, उनकी निष्ठा क्या है? सत्त्व, रजस या तमस?"

श्लोक 2:
"श्री भगवानुवाच –
त्रिविधा भवति श्रद्धा देहिनां सा स्वभावजा।
सात्त्विकी राजसी चैव तामसी चेति तां शृणु।।"

भावार्थ:
"श्री भगवान बोले - देहियों की श्रद्धा स्वभावजनित तीन प्रकार की होती है - सात्त्विकी, राजसी और तामसी, उसे सुनो।"

श्लोक 3:
"सत्त्वानुरूपा सर्वस्य श्रद्धा भवति भारत।
श्रद्धामयोऽयं पुरुषो यो यच्छ्रद्धः स एव सः।।"

भावार्थ:
"हे भारत! सबकी श्रद्धा उसके सत्त्व के अनुरूप होती है। यह पुरुष श्रद्धामय है, जो जैसी श्रद्धा वाला है, वह वैसा ही है।"

श्लोक 4:
"यजन्ते सात्त्विका देवान्यक्षरक्षांसि राजसाः।
प्रेतान्भूतगणांश्चान्ये यजन्ते तामसा जनाः।।"

भावार्थ:
"सात्त्विक लोग देवताओं का, राजस लोग यक्ष और राक्षसों का, और तामस लोग प्रेतों और भूतगणों का यजन करते हैं।"


🔥 श्लोक 5-10: तीन प्रकार के आहार

श्लोक 7:
"आहारस्त्वपि सर्वस्य त्रिविधो भवति प्रियः।
यज्ञस्तपस्तथा दानं तेषां भेदमिमं शृणु।।"

भावार्थ:
"सबके प्रिय आहार भी तीन प्रकार के होते हैं, यज्ञ, तप और दान भी, उनके इस भेद को सुनो।"

श्लोक 8:
"आयुःसत्त्वबलारोग्यसुखप्रीतिविवर्धनाः।
रस्याः स्निग्धाः स्थिरा हृद्या आहाराः सात्त्विकप्रियाः।।"

भावार्थ:
"आयु, सत्त्व, बल, आरोग्य, सुख और प्रीति को बढ़ाने वाले, रसयुक्त, स्निग्ध, स्थिर और हृदय को भाने वाले आहार सात्त्विकों को प्रिय होते हैं।"

श्लोक 9:
*"कट्वम्ललवणात्युष्णतीक्ष्णरूक्षविदाहिनः।
आहारा राजसस्येष्टा दुःखशोकामयप्रदाः।।"

भावार्थ:
"कड़वे, खट्टे, नमकीन, अत्यंत गर्म, तीक्ष्ण, रूखे और दाहक आहार राजसिकों को प्रिय होते हैं, जो दुःख, शोक और रोग देने वाले हैं।"

श्लोक 10:
"यातयामं गतरसं पूति पर्युषितं च यत्।
उच्छिष्टमपि चामेध्यं भोजनं तामसप्रियम्।।"

भावार्थ:
"बासी, बिना रस का, सड़ा हुआ, उच्छिष्ट और अमेध्य भोजन तामसिकों को प्रिय होता है।"


🌼 श्लोक 11-22: तीन प्रकार के यज्ञ, तप और दान

श्लोक 11:
"अफलाकाङ्क्षिभिर्यज्ञो विधिदृष्टो य इज्यते।
यष्टव्यमेवेति मनः समाधाय स सात्त्विकः।।"

भावार्थ:
"जो यज्ञ फल की इच्छा रहित होकर विधिपूर्वक 'यज्ञ करना ही चाहिए' ऐसा मन में समाधान करके किया जाता है, वह सात्त्विक है।"

श्लोक 12:
"अभिसन्धाय तु फलं दम्भार्थमपि चैव यत्।
इज्यते भरतश्रेष्ठ तं यज्ञं विद्धि राजसम्।।"

भावार्थ:
"हे भरतश्रेष्ठ! जो यज्ञ फल की अभिसन्धि और दंभ के लिए किया जाता है, उसे राजस जानो।"

श्लोक 13:
"विधिहीनमसृष्टान्नं मन्त्रहीनमदक्षिणम्।
श्रद्धाविरहितं यज्ञं तामसं परिचक्षते।।"

भावार्थ:
"विधिहीन, अन्नरहित, मंत्रहीन, दक्षिणारहित और श्रद्धारहित यज्ञ तामस कहा जाता है।"

श्लोक 14:
"देवद्विजगुरुप्राज्ञपूजनं शौचमार्जवम्।
ब्रह्मचर्यमहिंसा च शारीरं तप उच्यते।।"

भावार्थ:
"देव, द्विज, गुरु और ज्ञानियों की पूजा, शौच, आर्जव, ब्रह्मचर्य और अहिंसा - यह शारीरिक तप कहा जाता है।"

श्लोक 17:
"श्रद्धया परया तप्तं तपस्तत्त्रिविधं नरैः।
अफलाकाङ्क्षिभिर्युक्तैः सात्त्विकं परिचक्षते।।"

भावार्थ:
"परा श्रद्धा से तप्त किया हुआ तप, जो फल की इच्छा रहित युक्त पुरुषों द्वारा किया जाता है, वह सात्त्विक कहा जाता है।"

श्लोक 18:
"सत्कारमानपूजार्थं तपो दम्भेन चैव यत्।
क्रियते तदिह प्रोक्तं राजसं चलमध्रुवम्।।"

भावार्थ:
"सत्कार, मान और पूजा के लिए तथा दंभ से जो तप किया जाता है, वह राजस चल और अध्रुव कहा जाता है।"

श्लोक 19:
"मूढग्राहेणात्मनो यत्पीडया क्रियते तपः।
परस्योत्सादनार्थं वा तत्तामसमुदाहृतम्।।"

भावार्थ:
"मूढ़ग्रह से आत्मा की पीड़ा के लिए या पर के उत्सादन के लिए जो तप किया जाता है, वह तामस कहा जाता है।"

श्लोक 20:
"दातव्यमिति यद्दानं दीयतेऽनुपकारिणे।
देशे काले च पात्रे च तद्दानं सात्त्विकं स्मृतम्।।"

भावार्थ:
"'देना चाहिए' ऐसा समझकर अनुपकारी को देश, काल और पात्र में जो दान दिया जाता है, वह सात्त्विक दान कहा जाता है।"

श्लोक 21:
"यत्तु प्रत्युपकारार्थं फलमुद्दिश्य वा पुनः।
दीयते च परिक्लिष्टं तद्दानं राजसं स्मृतम्।।"

भावार्थ:
"जो प्रत्युपकार के लिए या फल की इच्छा से अथवा क्लेशपूर्वक दिया जाता है, वह राजस दान कहा जाता है।"

श्लोक 22:
"अदेशकाले यद्दानमपात्रेभ्यश्च दीयते।
असत्कृतमवज्ञातं तत्तामसमुदाहृतम्।।"

भावार्थ:
"जो दान अदेश, अकाल और अपात्र को असत्कृत और अवज्ञात होकर दिया जाता है, वह तामस कहा जाता है।"


💫 श्लोक 23-28: ॐ तत सत का महत्व

श्लोक 23:
"ॐ तत्सदिति निर्देशो ब्रह्मणस्त्रिविधः स्मृतः।
ब्राह्मणास्तेन वेदाश्च यज्ञाश्च विहिताः पुरा।।"

भावार्थ:
"ॐ तत सत - इस प्रकार ब्रह्म का तीन प्रकार से निर्देश किया गया है। ब्राह्मण, वेद और यज्ञ पहले इसी से विहित किए गए।"

श्लोक 24:
"तस्मादोमित्युदाहृत्य यज्ञदानतपःक्रियाः।
प्रवर्तन्ते विधानोक्ताः सततं ब्रह्मवादिनाम्।।"

भावार्थ:
"इसलिए ब्रह्मवादियों की यज्ञ, दान और तप की क्रियाएँ विधानोक्त 'ॐ' कहकर सदा प्रवृत्त होती हैं।"

श्लोक 25:
"तदित्यनभिसन्धाय फलं यज्ञतपःक्रियाः।
दानक्रियाश्च विविधाः क्रियन्ते मोक्षकाङ्क्षिभिः।।"

भावार्थ:
"मोक्षकांक्षियों द्वारा फल की अभिसन्धि रहित होकर यज्ञ, तप और दान की विविध क्रियाएँ 'तत्' कहकर की जाती हैं।"

श्लोक 26:
"सद्भावे साधुभावे च सदित्येतत्प्रयुज्यते।
प्रशस्ते कर्मणि तथा सच्छब्दः पार्थ युज्यते।।"

भावार्थ:
"हे पार्थ! सद्भाव और साधुभाव में तथा प्रशस्त कर्म में 'सत्' शब्द प्रयुक्त होता है।"

श्लोक 27:
"यज्ञे तपसि दाने च स्थितिः सदिति चोच्यते।
कर्म चैव तदर्थीयं सदित्येवाभिधीयते।।"

भावार्थ:
"यज्ञ, तप और दान में स्थिति 'सत्' कही जाती है और उसके अर्थ के लिए कर्म भी 'सत्' ही कहा जाता है।"

श्लोक 28:
"अश्रद्धया हुतं दत्तं तपस्तप्तं कृतं च यत्।
असदित्युच्यते पार्थ न च तत्प्रेत्य नो इह।।"

भावार्थ:
"हे पार्थ! श्रद्धारहित हुत, दत्त, तप्त और कृत कर्म 'असत्' कहा जाता है, वह परलोक और इहलोक में कुछ नहीं होता।"


🌍 आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता

🧘‍♂️ व्यक्तिगत विकास के लिए:

  • Mindful Eating: सचेतन आहार

  • Purposeful Actions: सोद्देश्य कर्म

  • Spiritual Growth: आध्यात्मिक विकास

💼 पेशेवर जीवन के लिए:

  • Ethical Business: नैतिक व्यवसाय

  • Quality Work: गुणवत्तापूर्ण कार्य

  • Social Responsibility: सामाजिक उत्तरदायित्व

🌱 सामाजिक संदर्भ में:

  • Cultural Values: सांस्कृतिक मूल्य

  • Charitable Work: परोपकारी कार्य

  • Moral Education: नैतिक शिक्षा


🛤️ श्रद्धात्रय विभाग योग से प्राप्त जीवन-मंत्र

  1. "श्रद्धा अनुसार कर्म करो" – स्वभाव के अनुरूप

  2. "सात्त्विक आहार ग्रहण करो" – स्वास्थ्य और शांति

  3. "निष्काम कर्म करो" – वास्तविक सफलता

  4. "ॐ तत सत का स्मरण करो" – दिव्य शक्ति


📚 व्यावहारिक अनुशीलन

दैनिक जीवन में अपनाएँ:

  • संतुलित और पौष्टिक आहार

  • निस्वार्थ सेवा और दान

  • नियमित साधना और स्वाध्याय

आध्यात्मिक अभ्यास:

  • ॐ का जाप और ध्यान

  • सात्त्विक जीवनशैली

  • श्रद्धापूर्वक कर्म


🌈 निष्कर्ष: श्रद्धा का महत्व

श्रद्धात्रय विभाग योग हमें सिखाता है कि वास्तविक सफलता श्रद्धापूर्वक किए गए सात्त्विक कर्मों में है। यह अध्याय मानव जीवन के प्रत्येक पहलू में श्रद्धा के महत्व को प्रतिपादित करता है।

✨ स्मरण रहे:
"श्रद्धा है जीवन का आधार, श्रद्धा है सब कुछ सार।
सात्त्विक कर्म से मिले मोक्ष, राजस-तामस से बंधन विस्तार।
ॐ तत सत का जाप करो, श्रद्धा से भरो मन।
यही है जीवन का सत्य, यही है ब्रह्म का ज्ञान।"


🕉️ श्री कृष्णार्पणमस्तु 🕉️

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